बुधवार, 3 अप्रैल 2013

पापा की सोच बहुत ही आशावादी थी एक बार छोटी बहन की चप्पल मंदिर से चोरी चली गयी हम दोनों बहुत दुखी हो गए की घर पर क्या कहेंगे डरते डरते जब घर पर बताया तब पापा ने हम दोनों को कहा की बस अब तुम्हारे सारे दुःख भगवन ने चोरी कर लिए मतलब दूर कर दिए अब सब अच्छा ही होगा और हुआ भी ऐसा ही छोटी बहन इंडियन टेलिकॉम सर्विस में चयनित हो गयी .बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी पापा यही कहते की इशवर इच्छा से सब ठीक ही होगा .अपनी बेटियों पर पापा बहुत भरोसा करते थे मुझे याद है जब हमारा ट्रांसफर उमरिया से मंडला हुआ तब गर्ल्स कॉलेज में हिस्ट्री सब्जेक्ट नहीं था इसलिए मुझे ले कर पापा दूसरे कॉलेज गए वहां पता लगा की आर्ट्स में कोई लड़की नहीं है और करीब अस्सी नब्बे लड़के है मेरा तो डर के मारे दम ही निकल गया पर पापा ने प्रिंसिपल से कहा की मेरी बेटी बहुत बहादुर है वो जरूर पढेगी और मेरा एडमिशन करवा दिया और रोज मेरी हिम्मत बढ़ाते रहे इस कारण ही मै उस कॉलेज में तीन साल तक पढ़ सकी और उस अकेले पढने का असर ये हुआ की जिंदगी में बड़े से बड़े शहर यहाँ तक की लन्दन तक अकेले जाने की हिम्मत कर ली काश सब लड़कियों को ऐसे ही पापा मिलते तो हमारे भारत की तस्वीर ही कुछ और होती  

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