बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

आज मम्मी से बात करते हुए एक किस्सा याद आ गया जब पापा कि पोस्टिंग गुना में थी तब एक प्यून था जिसको कुछ बीमारी हो गयी पापा ने सिविल सर्जन से उसका हाल पुछा तब उन्होंने बताया कि इसका ऑप्रेशन करना पड़ेगा एक गाँठ है इसके हाथ में जो केन्सर भी हो सकता है पर ये डर रहा है    तब पापा ने उसको समझाया कि जल्दी ऑप्रेशन क्यूँ नहीं करवा लेते तब वो बहुत दुखी हो कर बताया कि साहब मेरा कोई घर का यहाँ नहीं है मुझे डर लगता है तब पापा उसको बोले कि अरे  हम तो है डरने कि क्या बात पर वो फिर भी नहीं माना बोला कि आप हॉस्पिटल में थोड़े रहोगे मै अकेला ऑप्रेशन नहीं करवा सकता तब पापा ने उसको दिलासा दी कि घबराओ नहीं हम तुम्हारे ऑप्रेशन के समय तुम्हारे साथ रहेंगे फिर पापा ने डॉक्टर से बोल कर उसका ऑप्रेशन फिक्स करवा दिया और उसको ले कर हॉस्पिटल भर्ती करवाया और जब ऑप्रेशन हुआ तब डॉक्टर साहब ने ऐसा इंतजाम किया कि वो पापा को देख सके पापा पूरे ऑप्रेशन के समय वहाँ रहे पापा के कारण सारा हॉस्प्ताल उसकी विशेष देखभाल करता रहा फिर जब तक वो भर्ती रहा पापा रोज उसको सुबह शाम देखने जाते थे डॉक्टर साहब ने भी पापा को बोला कि आपके कारण साधारण मरीज को विशेष मरीज का दर्जा मिल रहा है ,ऐसे थे पापा .जब हमारा ट्रांसफर हुआ तब वो प्यून बहुत रोया .आज कल के दौर में जब साहब और प्यून का व्यवहार देखती हूँ तब बड़ी हैरानी होती है कि इतनी  बड़ी पोस्ट पर होने के बाद भी पापा अपने प्यून के लिए हॉस्पिटल में खड़े रहे क्यूंकि वो जानते थे कि यदि वो नहीं रहेंगे तो वो कभी इलाज नहीं कराएगा .        

सोमवार, 26 अगस्त 2013

पापा ने हम लोगों को कभी भी बाध्य  नहीं किया कि जबरन कुछ करो मेरे  ग्यारहवीं क्लास के बाद पापा का ट्रांसफर इंदौर से उमरिया हो गया था छोटा शहर होने के कारन उमरिया में कॉलेज में साइंस विषय नहीं था तय ये हुआ कि मैं और मेरा भाई जबलपुर में रह कर पढेंगे मेरा दाखिला जबलपुर में कॉलेज में करवा दिया गया पर पन्द्रह दिन में ही मैं घबरा गयी क्यूंकि दादाजी बहुत सख्त स्वभाव के थे और पापा ने कभी कोई बंधन हम लोगों पर नहीं लगाया था पन्द्रह दिन बाद पापा मम्मी हमसे मिलने जबलपुर आये तब मैंने पापा से रो रो कर साथ ले चलने को कहा मम्मी और दीदी ने बहुत समझाया कि साइंस वहां नहीं मिलेगा विषय बदलने में तुमको परेशानी होगी पर पापा ने कहा कि जब इसकी इच्छा यहाँ रहने कि नहीं है तब क्यूं इसको मजबूर कर रहे हो तुरंत मेरा नाम जबलपुर के कॉलेज से कटवा कर अपने साथ ले गए और उमरिया में मैंने बी ए  में दाखिला ले लिया मम्मी नाराज होती रही कि दादा दादी के साथ रह कर उनकी सेवा करनी थी पर पापा ने सिर्फ मेरी बात मानी.जब एल एल बी के बाद मैंने कोर्ट जाना चाहा तब भी रिश्तेदारों कि परवाह न करते हुए मुझे वकील के रूप में काम करने दिया फिर नौकरी में आने पर भी मेरी इच्छा के विरुध्ध कभी शादी के लिए मजबूर नहीं किया .एक किस्सा याद आता है एक बहुत ही समीप के रिश्तेदार कि बहन को देखने कुछ लोग आये थे तब उन्होंने पापा मम्मी को भी बुलाया लड़के वाले अच्छे थे पर लड़का नहीं आया था .परिवार वाले जल्दी में थे कि जब सब बात जम रही है तो शगुन  कर दिया जाये पर लड़की राजी नहीं थी कि लड़के को देखे बिना कैसे हाँ करे जब उन लोगों ने पापा को कहा कि भाई साहब आपकी क्या राय है शगुन कर दे क्या तब पापा ने कहा कि देखिये विवाह आपकी बहन का होना है उसकी राय ज्यादा जरूरी है जब वो मना कर रही है तो आप बाकि लोगों कि राय मत लीजिये और बहन कि बात मानिये क्यूंकि वो पढ़ी लिखी और नौकरी करती है अपना भला बुरा सोच सकती है ,मम्मी ने और बाकि लोगों ने पापा को बहुत समझाया कि आप लड़की का साथ मत दो उनके घर का मामला है जैसा उनको ठीक लगे करने दो पर पापा ने अपनी बात जारी रखी और लड़की ने भी पापा का साथ पा कर अपने भाइयों को मना कर दिया कि जबरदस्ती न करे जब लड़के वाले चले गए तब माहोल कुछ भारी सा हो गया सब लोग लड़की को समझाने लगे कि उसकी उम्र ज्यादा हो गयी है इतना घमंड नहीं करना चाहिए ,तभी हमारी एक मौसी ने कहा " जीजाजी (पापा के लिए ) कि बहुत बुरी आदत है हमेशा दूसरों को सलाह देते रहते है इतना अच्छा रिश्ता निकल गया" तब पापा ने कहा कि" जैसे मैं अपनी लड़कियों से उनकी राय लेता हूँ वैसे ही मैंने सलाह दी कि पहले लड़की से पूछो "
वो लड़की भी बोल उठी" इसलिए तो आपकी लड़कियां इतनी अच्छी पोजीशन में है और बहुत खुश है"
बाद में उस लड़की कि शादी भी बहुत अच्छे लड़के से उसकी पसंद करने के बाद हुई .आज भी वो यही कहती है कि यदि आपके पापा ने मेरा साथ न दिया होता  तो पता नहीं मैं क्या करती 

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013




आज फिर एक बच्चे के रोड दुर्घटना में मरने  की  खबर पढ़ी तो फिर पुरानी बातें याद आने लगी जब मैं और मेरी छोटी बहन  लूना चलाते थे तब पापा ने हमको प्लग साफ़ करना ब्रेक टाइट करना सब सिखाया वो कहते थे की जब गाड़ी चला रहे हो तो सारी जानकारी खुद को होना चाहिए ,फिर हमने कार सीखने की जिद की तब पापा ने पहले कागज पेन ले कर हमको सारी बात समझाई की कार चलाते समय क्या क्या बात पर हमारा ध्यान होना चाहिए , कितनी स्पीड पर कौन सा गेयर  लगाना चाहिए ,चढ़ाई पर कौन सा और ढलान पर कौन सा गेयर लगाना चाहिए कब हेंड ब्रेक लगाना चाहिए ,जब सारी बाते समझा दी तब रोज मुझको और छोटी बहन को ले कर कार चलवाने जाते थे रोज रात को हमारा यही काम था की कार चलायें एक दिन कार अन्दर लाते समय कार की एक तरफ रगड़ खा गयी मैं बहुत डर गयी की अब पापा डांटेंगे क्यूंकि वो अपनी गाड़ियों को बहुत प्यार करते थे ,पर पापा ने समझाया की कार अन्दर ले जाते समय किस तरफ ज्यादा मोड़ना है पीछे करते समय कैसे मोड़ना है और मुझसे बार बार कार अन्दर बाहर करवाते रहे जब तक मुझे ठीक से अंदाज नहीं हो गया .फिर हम लोग जब कार सीख गए तब पापा ने स्टेशन जाते टाइम हम लोगो को ही बोलना शुरू किया की तुम लोग छोड़ कर आओ मम्मी टोकती थी की अरे इतनी रात को लड़कियां अकेली कैसे आएँगी तब पापा कहते थे की कार में आना है उनको और मेरी बेटियां बहुत बहादुर है .हम लोग उनको स्टेशन छोड़ कर कितनी भी रात हो अकेले आ जाते थे कार ख़राब होने का भी डर नहीं था क्यूंकि पंक्चर होने पर कैसे टायर बदलना है ये भी हमको सिखाया गया था .कुछ दिन पहले ही मैं और दीदी, जीजाजी के साथ बाजार गए थे वापसी में टायर पंक्चर हो गया जीजाजी उसी टाइम बीमारी से उठे थे तो मैंने और दीदी ने टायर बदल दिया .आज के माता पिता बच्चों की जिद पर उनको गाड़ी चलाने दे देते है पर किन बातों का ध्यान रखना है ये नहीं समझाते .मैंने एक बार पापा को कहा की पापा मुझे अभी तक कार चलाने में कॉन्फिडेंस नहीं आया है तब पापा बोले की बेटा मुझे पचास साल हो गए और कॉन्फिडेंस नहीं आया है और अच्छा है की डर कर चलो कम से कम सुरक्षा तो रहेगी क्यूंकि आप तेज चलो या धीरे मुश्किल से कुछ मिनट्स का फर्क पड़ता है इसलिए धीरे चलो और सुरक्षित चलो .पापा की एक बात और ध्यान देने वाली है पापा कहते थे जो अपने घोड़े की जितनी सेवा करेगा उसका घोडा भी उसको उतना सुख देगा इसलिए अपने घोड़े यानि की अपने वाहन की सेवा करो मतलब उसका ध्यान रखो तभी वाहन का सुख भी मिलेगा .   

गुरुवार, 2 मई 2013


मेरा बेटे को जब तकलीफ होती है तब मै परेशान होती हूँ परन्तु फिर पापा की याद आती है जब ऐश्वर्य होने वाला था तब डॉक्टर ने मुझको सीढ़ी चड़ने से मना कर दिया परन्तु उस समय हमारे पास दो ही बेड थे और बेडरूम ऊपर था ,बेड फिक्स थे जिनको नीचे लाना मुश्किल था , पापा उस समय मेरे पास ही थे वो हमको रोज कहते थे की दो बेड ले आओ और नीचे के रूम मै लगा लो ऊपर के रूम मै मत जाओ पर हम लोग आलस के कारण रोज टाल रहे थे और मै ऊपर के रूम मै ही चली जाती थी फिर पापा बिलासपुर से वापस जबलपुर चले गए जाने के दुसरे दिन ही फ़ोन आया की पापा बस से फिर बिलासपुर आ रहे है हम लोग सोच मै पड़ गए की इतनी जल्दी पापा वापस क्यूं आ रहे है जब पापा घर पहुचे तब देखा की पापा जबलपुर के घर मै रखे पुराने बेड बस से ले कर आ गए बोले की मुझे पता है तुम लोग व्यस्त रहते हो बाजार जाने का समय भी नहीं है इसलिए मै ही जबलपुर से बेड ले आया अब नीचे के रूम में रहा करो ऊपर के रूम में जाना एकदम बंद करो क्यूंकि डॉक्टर ने तुमको मना किया है मेरे तो आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे हम लोग इस उम्र में बाजार तक जाने में आलस कर रहे थे और पापा ६५ की उम्र में बिलासपुर से जबलपुर गए रात भर का सफ़र करने के बाद भी तुरंत बिना आराम किये बस वाले से बात करके बेड ले कर दुसरे दिन ही बिलासपुर पहुच गए वो भी सिर्फ इसलिए की मुझे तकलीफ ना हो इतना बेटियों का इतना ख्याल रखने वाले पापा बहुत कम होते है  

बुधवार, 17 अप्रैल 2013





आज प्लेन का टिकेट बुक करवाते हुए एक पुरानी बात फिर याद आ गयी मेरे भाई बहन साइंस और गणित विषय लिए थे में अकेली आर्ट्स ले कर पढ़ रही थी और क्लास में तीनो भाई बहन पहला रैंक लाते थे में अकेली थी जो क्लास में रैंक नहीं ला पाती थी बस १ श्रेणी ही मिलने पर खुश हो जाती थी ,इसलिए फ्यूचर के बारे में बहुत बड़ा प्लान नहीं बनाया था पर एक दिन पापा के विश्वास ने मेरी दुनिया ही बदल दी हुआ ये की मम्मी न्यूज़ पेपर पढ़ कर आह भर रही थी की कुछ लोग कितने अमीर और खुश किस्मत होते है की प्लेन में घूम सकते है एक हम है की प्लेन देखा भी नहीं मेने मम्मी के हाथ से पेपर ले कर कहा की मम्मी मै तुमको प्लेन में घुमा दूँगी सुनते ही भाई जोर से हंसा हा हा तुम क्या घुमाओगी सुनत ेही मै चुप हो गयी पर पापा ने तुरंत बोला की क्यं नहीं घुमा सकती जरूर घुमाएगी वो बड़ी ऑफिसर बनेगी और जरूर मम्मी को प्लेन मै ले जाएगी ये सुन कर मैने तुरंत ये पक्का वादा स्वयं से किया की मुझे अब बहुत मेहनत करनी है और पापा का विश्वास सच करना है और मैने उस दिन से ही कोशिश शुरू की और एक दिन जज के रूप मै चयनित हो गयी रायपुर से एक दिन मैने पापा और मम्मी की प्लेन की टिकेट चंडीगढ़ के लिए बुक करवा दी और उस दिन पापा को फ़ोन किया की आप दोनों जबलपुर से रायपुर आ जाओ मुझे अपना वादा पूरा करना है और मम्मी को प्लेन से भेजना है ,पापा बहुत खुश हुए और जा कर सारे रिश्ते दारों को बता आये की हमारी बेटी हमको प्लेन से भेज रही है पापा मम्मी के प्लेन मै जाने के बाद बहुत देर तक उस प्लेन को देखती खड़ी रही और पापा की बात कान मे गूंजती रही की ये बड़ी ऑफिसर बनेगी और जरूर मम्मी को प्लेन मे घुमाएगी  

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013


एक बात पापा की बहुत अच्छी थी की वो हम बच्चों को बहुत कम डाँटते थे मुझे याद है जब हम चारों भाई बहन लड़ाई करने के बाद उनके पास शिकायत करने जाते थे तब वो कहते थे की एक के बाद एक अपनी बात कहो सबसे छोटी बहन पहले शुरू करती थी जब हम में से कोई बीच में बोलने की कोशिश करे तब पापा कहते थे की जब तुम्हारा नंबर आएगा तब कहना और जब तक हमारा नंबर आता तब तक सबका गुस्सा शांत हो चूका रहता और किसी दुसरे विषय पर बात चलने लगती थी पापा जज थे और कोर्ट में यही तरीका अपनाया जाता है दो एडवोकेट्स की लड़ाई रोकने के लिए की पहले एक अपनी बात पूरी करे फिर दुसरे की बात शुरू हो जिससे वादविवाद की नौबत नहीं आती ,उनकी ये बात मेरे काम करने में बहुत मददगार है .मेरी कोर्ट में वादविवाद बहुत कम होता है .

बुधवार, 3 अप्रैल 2013




मेरे भैया ने एक कविता पापा पर लिखी वो ये है ---
उंगली पकड़ कर जिसने चलना सिखाया था ,
सिखाया था जिसने चुनोतियों को स्वीकार करना
जिसने हमारे विचारों को इतना दृढ बनाया
और दिशा दी कैसे आत्मविश्वास से भरना
हे परमपिता उस पिता के स्नेह की छांव
हर जनम में प्रदान करना